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 الصلوٰۃ والسلام علیک یا سیدی یا رسول اللہ ﷺ وعلیٰ اٰلک و اصحابک یا سیدی یا حبیب اللہ ﷺ

بِسْمِ ٱللَّٰهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ


इस्लाम एक मुकम्मल जाब्ता -ए-हयात है, पूरी नस्ले इंसानी के लिये ये एक मरकज़ है जहाँ पर हर मौके पर रहनुमाई मिलती है। पैदाइश से ले कर जन्नत और जहन्नम में दुखूल तक हर चीज़ का शाफ़ी और वाफी बयान मज़हले इस्लाम अता करता है।


नबी -ए- करीम : صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم मुख्तारे कुल हैं और अल्लाह तआला ने आप को मकान व मयाकून का इल्म अता फरमाया है, आप की जाहिरी हयात में सहाबा -ए-किराम को आप से बहुत कुछ सीखने को मिला। नबी صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم की बारगाह में जो मसअला पेश किया जाता उस का फ़ौरन जवाब मिल जाता था। 


हुजूर صلّی اللہ تعالٰی علیہ واٰلہ وسلّم की जाहिरी जिंदगी में इस्लाम का पैगाम अरब से निकल कर काफ़ी ममालिक में पहुंच चुका था। आप के ज़ाहिरी विसाल के बाद नये और जदीद मसाइल भी पेश आने लगे जिन्हें मुज्तहिदीन सहाबा ने बड़ी अर्क रेज़ी से हल फ़रमाया कई ऐसे मुज्जहिदीन सहावा थे जिन से मसाइल में लोग रुजू करते।


सहाबा के बाद ताबईन का दौर आया और जदीद मसाइल दरपेश आये। वक़्त के ज़बरदस्त फुकहा ने अपने तलामिज़ा के साथ मिल कर मसाइल को क़ुरआन व हदीस की रोशनी में हल फ़रमाया और कसीर मसाइल के हल के लिये बेशुमार जुजियात का खज़ाना उम्मते मुस्लिमा को अता फरमाया। सहाबा और ताबईन के ज़माने से ये सिल्सिला क्राइम व दाइम है। 


मौजूदा दौर में बा काइदा दारुल छपत्ता से ज़िन्दगी के हर मैदान में लोगों की रहनुमाई का सिल्सिला जारी व सारी है। फुकहा और मुज्तहिदीन ने अगर्चे हज़ारों जुज़ियात का जखीरा जमा फरमा दिया है लेकिन फिर भी वक़्तन फ़-वक़्तन ऐसे जदीद मसाइल सामने आ जाते हैं जहाँ पर एक माहिर ज़की मुफ्ती की नज़र पहुंचती है जो सीप से मोती निकालने में कामयाब हो जाता है। इस मौजूदा दौर में काफी तादाद में दारुल इफ्ता काइम हैं जहाँ से हर वक्त कौमे मुस्लिम की रहनुमाई की जाती रही है। जदीद मसाइल पर बहुत सारी किताये मरिजे बुजूद में आ चुकी है. मस्लन फतावा रज़विय्या शरीफ़, फतावा मुफ्ती -ए- आजम, फ़्तावा वारुल उलूग, फतावा फैसूल, फतावा मरकज़ तरबियत इफ्ता वगैरह कादरीय वा जदीद मसायल पर इतनी सारी किताबें मौजूद हैं कि किताबों का दिल्लदाइरह अगर उन का गुताला करे तो इल्मा के फैजान से मालामाल होगा।


लेकिन लोगों की एक बड़ी तादाद ऐसी भी है जो किताबें पढ़ना नहीं जानती, अरबी उर्दू से उनको दिलचस्पी नहीं है या उन को किताबें आसानी से दस्तयाब नहीं हो सकती हैं। ज़रूरत थी कि ऐसे लोगों को दीन का पैगाम आसानी से कैसे पहुंचे और उन के रोज़ मर्रा के मसाइल घर बैठे कैसे हल हों।


चूँकि मीडिया का दौर है. हर शख्स के पास मोबाइल मौजूद है। 


इसी ज़रूरत को महसूस करते हुये हमने  इंटरनेट पर Hamare-Nabi.Blogspot.Com के नाम से एक वेबसाइट की नींव रखी ताकि आवामे अहले सुन्नत को आसान और सादा अंदाज़ में ज़िंदगी के मुतल्लिक़ बे-शुमार मसाइल में रहनुमाई की जाये।


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